
तखतपुर से नोतन टेकवानी की रिपोर्ट :-
तखतपुर, । बिलासपुर से मुंगेली तखतपुर, मंडला होते हुए जबलपुर तक प्रस्तावित रेल लाइन की स्वीकृति अंग्रेजी शासन काल में ही 1944 में दे दी गई थी। इसे तत्कालीन अंग्रेज प्रशासन ने रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानते हुए ‘सेंट्रल इंडिया कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट’ का हिस्सा बनाया था। लेकिन आज़ादी के लगभग 78 साल बाद भी यह रेल लाइन धरातल पर नहीं उतर सकी है। जबकि रेलवे के पास खुद की जमीन भी है।
उदाहरण के तौर पर, इसी योजना के समानांतर बनी अन्य रेल लाइन, जिसे ब्रिटिश काल में ही स्वीकृति मिली थी, आज छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र को जोड़ते हुए व्यापार और यातायात का बड़ा माध्यम बन चुकी है। लेकिन बिलासपुर-मंडला-जबलपुर रेल लाइन की अनदेखी कर केवल क्षेत्रीय विकास को रोका है, बल्कि आम जनता को सड़क मार्ग की सीमित और महंगी सुविधाओं पर निर्भर कर दिया है। इस परियोजना के लिए कई बार सर्वे हो चुका है किंतु इस परियोजना पर किसी भी राजनीतिक दल ने अपना संज्ञान नहीं लिया।
डबल इंजन ट्रिबल इंजन की सरकार पर स्थानीय जनता भरोसा करते आई की बहुत जल्दी इस परियोजना पर क्षेत्र का विकास होगा। यहां भी रेल का इंजन दौड़ेगा लेकिन हुआ नहीं केवल सर्वे लॉलीपॉप पकड़ा दिया जाता है इसके अलावा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा पीपीपी मॉडल से बिलासपुर- तखतपुर- मुंगेली होते हुए डोंगरगढ़ तक एक नई रेलवे लाइन के सर्वे किया गया था। जिसकी स्वीकृति मिल चुकी है लेकिन कई वर्षों से काम शुरू नहीं हो पाया है ।
तखतपुर, मुंगेली पंडरिया और मंडला जैसे इलाके, जहाँ रेल संपर्क से खेती-बाड़ी, वनोपज और हस्तशिल्प उद्योग को सीधा लाभ मिल सकता था, आज भी विकास की मुख्यधारा से वंचित हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि यदि यह रेल लाइन समय पर बन जाती, तो आसपास के युवाओं को बाहर पलायन नहीं करना पड़ता। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की सुविधाएं नज़दीक होतीं, और क्षेत्र का समग्र विकास संभव होता।
प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इस परियोजना को बार-बार नजरअंदाज किया गया। क्षेत्रीय जनता अब खुलकर सवाल पूछ रही है कि जब एक योजना को अंग्रेजों ने भी ज़रूरी समझा था, तो आज़ाद भारत में वह अब तक अधूरी क्यों है?
मांग यह है कि केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय इस ऐतिहासिक योजना को प्राथमिकता में लेते हुए जल्द से जल्द इसका कार्य प्रारंभ करें, ताकि वर्षों से उपेक्षित यह क्षेत्र भी रेल विकास की पटरी पर आ सके। कुछ दिनों पहले सबसे अधिक राजस्व देने वाले बिलासपुर जोन के लिए कई परियोजनाओं के लिए बजट भी आया लेकिन इस बहू प्रतिष्ठित मांग को दरकिनार कर दिया गया।